पालिकाओं में अब तक ढाबा, रेस्टारेंट, होटल, मोटल स्थापित करने को लेकर बनाई नीतियों के मध्य अब अपनी जमीन पर दुकान, शोरूम बनाकर व्यवसायिक गतिविधि संचालित करने वालों के लिए नीति का इंतजार अब खत्म हो गया है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने शहरी स्थानीय निकाय के उस प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है, जिसमें व्यवसायिक इकाई स्थापित करने के लिए जमीन का सीएलयू कराना संभव होगा। ऐसा होने से लगातार व्यवसायिक गतिविधियों को बिना सीएलयू शुरू करने पर कई बार सील का खतरा मंडराता था और व्यवसायिक गतिविधियां प्रभावित होने का खतरा बरकरार रहता था।
आज यहां जानकारी देते हुए शहरी स्थानीय निकाय मंत्री कविता जैन ने बताया कि सरकार द्वारा लंबे समय से महसूस किया जा रहा था कि पालिका क्षेत्र में ढाबा, रेस्टारेंट, होटल-मोटल संचालित करने को लेकर नीति उपयोग में लाई जा रही है। लेकिन अपनी जमीन पर व्यवसायिक गतिविधियां संचालित करने के लिए शोरूम, दुकान के लिए सीएलयू पाने वालों के लिए कोई नीति नहीं थी। ऐसे में पालिका क्षेत्रों में न केवल अवैध निर्माण बढ रहे थे, अपितु विभाग के सामने भी इन मामलों के संबंध में मुकदमों की संख्या बढती जा रही थी। यही नहीं वैध तरीके से अपनी जमीन पर व्यवसायिक प्रतिष्ठान बनाने के लिए आमजन आवेदन कर रहे थे। इस पर विचार करते हुए शहरी स्थानीय निकाय विभाग द्वारा नीति तैयार कर मुख्यमंत्री मनोहर लाल को भेजी गई। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस विषय की गंभीरता को समझते हुए नीति को मंजूरी प्रदान कर दी है।
शहरी स्थानीय निकाय मंत्री कविता जैन ने बताया कि पालिका क्षेत्र के विकास योजना में आवासीय तथा व्यवसायिक सेक्टरों में भी यह नीति लागू की जाएग। इसमें आवेदक अपनी जमीन पर दुकान, शोरूम स्थापित करने के लिए भूमि उपयोग बदलाव के लिए जिला नगर एवं योजना अधिकारी को तय फारमेट में आवेदन करेगा। संबंधित विभाग इसे मंजूरी प्रदान करने के लिए संबंधित पालिका को चि_ी लिखेगा, जिसके बाद पालिका अधिकारी मौका देखने के बाद सफल आवेदक सीएलयू की प्रक्रिया में हिस्सा ले सकेंगे। उन्होंने कहा कि नीति के तहत एकल मालिकाना हक वाली एक हजार वर्ग मीटर से कम वाली जमीन के सीएलयू संबंधी प्रक्रिया शुरू की जाएगी, इसमें कम से कम 200 वर्ग मीटर जमीन वाला आवेदक होगा। सीएलयू आवेदन में सफल आवेदक अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठान में सभी जनसुविधाएं आमजन को मुहैया कराएगा। उन्होंने बताया कि इससे पालिका क्षेत्र में व्यवसायिक गतिविधियों को सुनियोजित तरीके से संचालित करना आसान होगा तथा आमजन को भी जागरूकता के अभाव में अपनी जमीन पर अवैध तरीके से व्यवसायिक भवन बनाने तथा बाद में उनके प्रतिबंधित होने के नुकसान को उठाने में राहत मिलेगी।