पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल की कोठी में उनकी पौत्री पूर्व सांसद श्रुति चौधरी फिलहाल बनी रहेंगी। अतिरिक्त सेशन जज ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। सेशन कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश दिए हैं।
इस केस में दूसरा पक्ष चौधरी बंसीलाल स्मारक ट्रस्ट है, जिसके ट्रस्टी श्रुति के ताऊ रणबीर महेंद्रा हैं। श्रुति की मां किरण चौधरी और रणबीर महेंद्रा दोनों परस्पर विरोधी हैं। शनिवार को सिविल जज (जूनियर डिवीजन) आशुतोष की अदालत ने चौधरी बंसीलाल की समस्त संपत्ति पर ट्रस्ट का स्वामित्व माना था। इसमें वह कोठी भी शामिल है, जिसमें श्रुति चौधरी रहती हैं।
गत दिवस श्रुति चौधरी के अधिवक्ताओं ने फैसले के खिलाफ जिला एवं सत्र न्यायालय में अपील दायर की। श्रुति के अधिवक्ता एसके गर्ग नरवाना ने कहा कि चौ. बंसीलाल व सुरेंद्र सिंह ने ज्वाइंट म्यूचुअल विल श्रुति चौधरी के नाम की थी, जिस पर दो गवाहों चौ. बंसीलाल के भाई रघुबीर सिंह व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष छतर सिंह चौहान के हस्ताक्षर थे।
इन दोनों ने कोर्ट में बयान दिया है कि उनके समक्ष चौ. बंसीलाल ने वसीयत श्रुति चौधरी के नाम की थी। उन्होंने कहा कि चौ. बंसीलाल के बड़े पुत्र रणबीर सिंह महेंद्रा ने एक अलग वसीयत बनवाई। इस पर दो गवाहों चौ. बंसीलाल के दामाद राजेंद्र सिंह चाहर व अमर सिंह के हस्ताक्षर हैं। निचली कोर्ट में इन दोनों गवाहों ने कहा था कि बंसीलाल ने कभी उनके समक्ष वसीयत पर साइन नहीं किए।
श्रुति चौधरी ने बाद में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि चौ. बंसीलाल ने सभी बेटे और बेटियों को घर दिए हैं। केवल चौ. सुरेंद्र सिंह को कोई घर नहीं दिया। सभी जानते हैं कि चौ. सुरेंद्र सिंह अपने पिता चौ. बंसीलाल के साथ ही रहते थे। महेंद्र जी अब चौ. बंसीलाल के नाम से वसीयत लेकर घूम रहे हैं। इस वसीयत में दोनों गवाहों ने कोर्ट में कह दिया था कि जिस समय उनके साइन करवाए गए, उस समय चौ. बंसीलाल के साइन नहीं थे। चौ. बंसीलाल ने जनता के सामने मुझे पगड़ी पहनाकर जिम्मेदारी सौंपी थी और मैं इस जिम्मेदारी को अंतिम समय तक निभाऊंगी।
रणबीर महेंद्रा के अधिवक्ता अविनाश सरदाना ने कहा कि कोर्ट का फैसला हमारे खिलाफ नहीं है। न्यायालय ने 19-7-2005 की विल को कोर्ट ने सही ठहराया है। चौ. बंसीलाल की कोठी व जितनी भी प्रापर्टी है, वह ट्रस्ट की प्रॉपर्टी है। इसका ट्रस्ट ही मालिक है और उसी का कब्जा है। ऐसे में कोर्ट का फैसला ट्रस्ट के खिलाफ नहीं है।